मेरे तन्हा मन पे
निरन्तर होती है
घुसपैठ
तेरी यादों की,
और देर तक
होता है संघर्ष
टूटे ख्वाबों
को लेकर ,
आखिरकार
पानी ज्यों बहते है
अश्क दोनों के,
क्यों ना हम
मिलकर एक
समझौता करें, की ,
उधर तुम ,
अपनी यादों को
बांध के रखो ,
और इधर में,
करता हूँ कोशिश
बहलाने की,
इस मासूम
दिल को।
"विक्रम"
बहुत सुन्दर विक्रम जी ''मेरे तन्हा दिल पर होती घुसपैठ'' । अच्छी है आपकी लिखी पंक्तियां
उत्तर देंहटाएंयादों को ही तो नहीं बंधा जा सकता .... सुंदर अभिव्यक्ति
उत्तर देंहटाएंnice presentation of feelings ..माँ को कैसे दूं श्रद्धांजली
उत्तर देंहटाएंमेरे तन्हा मन में
निरन्तर होती है घुसपैठ
तेरी यादों की,
और देर तक होता है संघर्ष
टूटे ख्वाबों को लेकर …
आखिरकार
पानी ज्यों बहते है अश्क दोनों के…
बहुत सुंदर विक्रम जी !
बेहतरीन !
संवेदनशील रचना !
वाऽह ! क्या बात है !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे …
शुभकामनाओं सहित…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
उत्तर देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत सुंदर....काश यादों को बांधा जा सकता ।
उत्तर देंहटाएंबहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना,,,,बधाई
उत्तर देंहटाएंrecent post : प्यार न भूले,,,
बहुत सुंदर...
उत्तर देंहटाएंवाह...
उत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर...
कोमल सी कविता..
सादर
अनु
बहुत सुंदर
उत्तर देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना
उत्तर देंहटाएंकोमल भाव की रचना...
उत्तर देंहटाएंअति उत्तम प्रस्तुति....
:-)
बहुत सुंदर भाव ....सुंदर रचना ....!!
उत्तर देंहटाएंउधर तुम ,
उत्तर देंहटाएंअपनी यादों को
बांध के रखो ,
और इधर में,
करता हूँ कोशिश
बहलाने की,
इस मासूम
दिल को।
अहा ये नाजुक सी कविता ।
बहुत खूब ... पर यादें किसके रोके रूकती हैं ...
उत्तर देंहटाएंचली आती हैं बिन बुलाये बिन भेजे ...
कोशिश तो कर लेंगे पर सफलता इतनी आसान नहीं होगी दिल को बहलाने की :)
उत्तर देंहटाएंbahut khoob likha hai aapne,
उत्तर देंहटाएंvivek jain,
करता हूँ कोशिश
उत्तर देंहटाएंबहलाने की,
इस मासूम
दिल को।
क्या बात है। बहुत ही सुन्दर रचना।
शुभकामनाओं सहित आपका संजय सिंह जादौन