गाँव के स्कूल मे जब जनवरी-फरवरी
के महीनों मे सर्दी अपने पूरे शबाब पर होती थी तब हम हफ्ते में 3,4 बार बिना नहाये ही स्कूल चले जाते थे। लेकिन बावजूद इसके नहाये हुये से
लगें, इसके लिए ड्राई-क्लीन जरूर करते थे । ड्राई-क्लीन के
लिए एक लोटा हल्का गर्म पानी पर्याप्त होता था । उस लोटे से दोनों हाथ भिगोकर
हाथ-पैरों पर तेल की भांति पानी से मालिश कर लेते थे , साथ
ही साथ मुंह,गर्दन और बालों को चुपड़ना भी नहीं भूलते थे ।
उसके बाद “कच्ची घानी” वाला सरसों का तेल हथेली में
गड्ढा बनाकर उसमे भरते और फिर दोनों हथेलियां चुपड़कर बालों में रमा लेते। हथेलियों
मे बाकी बचे तेल को मुंह और हाथ पैर के उघड़े हिस्सों पर फेर लेते जिससे सर्दी से
सुखी चमड़ी मे चमक आ जाती थी।
प्रार्थना होने के बाद मास्टर
साहब एक एक छात्र की बाजू उठाकर उसकी कलाइयाँ, पायजामा उठाकर
उसकी टांगे , गर्दन के आगे पीछे ऐसे देखते थे जैसे कसाई हलाल
करने से पहले बकरे को देखता हैं । ड्राई-क्लीन मे अपारंगत छात्र इस जांच मे फेल हो
जाते थे जिन्हे असेंबली के सामने खड़ा करके “धोया” जाता था। जो छात्र जांच मे पास
हो जाते वो अपने ड्राई-क्लीनींग के हुनर पर खड़े खड़े मंद-मंद मुस्करा रहे होते। कुछ
सालों ये सिलसिला बड़े आराम से चलता रहा मगर फिर नए हैड-मास्टर साहब का हमारे स्कूल
मे पदार्पण हुआ।
उन्होने असेंबली मे कुछ नियमों मे
फेरबदल किया जो उन्हे पसंद नहीं थे। अब वो हाथ-पैरों और गर्दन के साथ साथ पेट से
शर्ट उठाकर भी देखने लगे, जिसे ड्राई-क्लीनिंग में सिद्दहस्त छात्र भी इस
जांच से बच ना सके। उसके बाद हाथ-पैरों के साथ साथ पेट पर भी गीला हाथ फिराकर
स्कूल जाना शुरू किया और नए हैड-मास्टर साहब की जांच मे पास होकर मास्टर साहब की
बुद्धि पर तरस खाते हुये अकड़ के साथ असेंबली मे सिर ऊंचा करके खड़े रहते । मगर हम
लोगों की ये चाल भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई , क्योंकि अब
पेट के साथ साथ पीठ भी जांच के दायरे मे आ गई थी। जिस पर खुजली करने से बनी लाइनों
का पूरा जाल मिलता था । हैड-मास्टर साहब अपनी इस जीत पर फुले नहीं समा रहे थे । अब
असेंबली के सामने वो चंद लड़के ही खड़े होते थे जो सम्पूर्ण-रूप से नहा कर आए हुये
होते थे , बाकी पूरी असेंबली की कपड़े उतारने जैसी बे-इज्जती
की जाती थी ।
और फिर असेंबली के सामने
घूम-घूमकर हैड-मास्टर साहब बड़े फख्र से हमें कह रहे होते की, “ये ड्राई-क्लीन उन्होने भी अपने स्कूल के दिनों मे बहुत की है ।“
"विक्रम"